नव-दुर्गा
नव दुर्गा के रूप और उनकी महिमा
शैलपुत्री 💦
नवरात्रि के प्रथम दिन में, माता के प्रथम रूप में, माता शैलपुत्री का पूजन होता है ।
पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम 'शैलपुत्री' पड़ा।
ब्रह्म का अर्थ है, तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली।
इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली।
दधाना करपद्माभ्यामक्षमाला-कमण्डलू ।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥
चंद्रघंटा 💦
माँ दुर्गाजी की तीसरी शक्ति का नाम चंद्रघंटा है ।
इनके मस्तक में घंटे के आकार का चंद्र है, जिसके कारण इन्हे चंद्रघंटा के नाम से जाना जाता है।
पिण्डजप्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकेर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुता॥
कूष्माण्डा 💦
सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदाऽस्तु मे॥
स्कंदमाता 💦
माता के पाँचवे रूप में, पाँचवे दिन स्कंदमाता की उपासना की जाती है ।
माता अपने गोद में स्कन्द देव को रखती है , जिसके करना माता का नाम स्कन्द माता पड़ा है।
सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदाऽस्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥
कात्यायनी 💦
माता का छठा रूप दया का रूप है, इस लिए माता के छठे स्वरूप का नाम कात्यायनी है ।
चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानव-घातिनी॥
माँ दुर्गाजी की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती हैं।
ये काल के समान रूप धारण करके रखती है, जिसके कारण इन्हे कालरात्रि कहा जाता है ।
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा।
वर्धन्मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥
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महागौरी 💦
श्वेते वृषे समारूढा श्वेताम्बरधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेव-प्रमोद-दा॥
सिद्धिदात्री 💦
माँ दुर्गा की नौवीं शक्ति का नाम सिध्दिदात्री हैं।
ये सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं, इस लिए इन्हे सिद्धिदात्री के नाम से जाना तजता है ।
सिद्धगन्धर्व-यक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।
सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।।
एक मत यह कहता है :-
कि ब्रह्माजी के दुर्गा कवच में वर्णित नवदुर्गा नौ विशिष्ट औषधियों में हैं।
1. शैलपुत्री - सम्पूर्ण जड़ पदार्थ भगवती का पहला स्वरूप हैं पत्थर मिट्टी जल वायु अग्नि आकाश सब शैल पुत्री का प्रथम रूप हैं। इस पूजन का अर्थ है प्रत्येक जड़ पदार्थ में परमात्मा को अनुभव करना।
2. ब्रह्मचारिणी - जड़ में ज्ञान का प्रस्फुरण, चेतना का संचार भगवती के दूसरे रूप का प्रादुर्भाव है। जड़ चेतन का संयोग है। प्रत्येक अंकुरण में इसे देख सकते हैं।
3. चन्द्रघण्टा - भगवती का तीसरा रूप है यहाँ जीव में वाणी प्रकट होती है जिसकी अंतिम परिणिति मनुष्य में बैखरी (वाणी) है।
4. कूष्माण्डा - अर्थात अण्डे को धारण करने वाली; स्त्री ओर पुरुष की गर्भधारण, गर्भाधान शक्ति है जो भगवती की ही शक्ति है, जिसे समस्त प्राणीमात्र में देखा जा सकता है।
5. स्कन्दमाता - पुत्रवती माता-पिता का स्वरूप है अथवा प्रत्येक पुत्रवान माता-पिता स्कन्द माता के रूप हैं।
6. कात्यायनी - कात्यायनी के रूप में वही भगवती कन्या की माता-पिता हैं। यह देवी का छठा स्वरुप है।
7. कालरात्रि - देवी भगवती का सातवां रूप है जिससे सब जड़ चेतन मृत्यु को प्राप्त होते हैं ओर मृत्यु के समय सब प्राणियों को इस स्वरूप का अनुभव होता है।भगवती के इन सात स्वरूपों के दर्शन सबको प्रत्यक्ष सुलभ होते हैं परन्तु आठवां ओर नौवां स्वरूप सुलभ नहीं है।
8. महागौरी - भगवती का आठवाँ स्वरूप महागौरी गौर वर्ण का है।
9. सिद्धिदात्री - भगवती का नौंवा रूप सिद्धिदात्री है। यह ज्ञान अथवा बोध का प्रतीक है, जिसे जन्म जन्मान्तर की साधना से पाया जा सकता है। इसे प्राप्त कर साधक परम सिद्ध हो जाता है। इसलिए इसे सिद्धिदात्री कहा है।
🙏🙏 जय माता दी 🙏🙏
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JAI MATA DI
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