जय श्री श्याम
ठाकुर जी ने कहा -:-
कुछ मांगों।
मैंने उनसे उन्हें ही मांग लिया।
ठाकुर जी ने कहा -:-
मुझे नहीं, कुछ और मांगों।
मैंने कहा -:-
राधा के श्याम दे दो।
ठाकुर जी ने कहा -:-
अरे बाबा, मुझे नहीं कुछ और मांगों।
मैंने कहा -:-
मीरा के गिरिधर दे दो।
ठाकुर जी ने फिर कहा -:-
तुम्हें बोला ना कुछ और मांगों।
मैंने कहा -:-
अर्जुन के पार्थ दे दो।
अब तो ठाकुर जी ने पूछना ही बंद कर दिया।
केवल इशारे से बोले :-
कुछ और।
-:- अब तो मैं भी शुरू हो गया -:-
यशोदा मईया का लल्ला दे दो।
गईया का गोपाल दे दो।
सुदामा का सखा दे दो।
जना बाई के विठ्ठल दे दो।
हरिदास के बिहारी दे दो।
सूरदास के श्रीनाथ दे दो।
तुलसी के राम दे दो।
ठाकुर जी पूछ रहे है -:-
तेरी सूई मेरे पे ही आके
क्यों अटकती हैं ?
मैंने भी कह दिया -:-
क्या करूँ प्यारे।
जैसे घड़ी का सैल जब खत्म होने वाला होता है तो उसकी सूई एक ही जगह खडी-खडी, थोड़ी-थोड़ी हिलती रहती हैं।बस ऐसा ही कुछ मेरे जीवन का हैं। श्वास रूपी सैल पता नहीं कब खत्म हों जायें।
संसार के चक्कर काट-काट कर सैकड़ों बार तेरे पास आया।लेकिन अपने मद्ध मे चूर फिर वापिस लौट गया।
परन्तु अब नहीं प्यारे।
अब और चक्कर नहीं।
अब तो केवल तुम।
हाँ तुम।
सिर्फ तुम।
तुम , तुम और सिर्फ़ तुम...
┈┉══❀((जय श्री कृष्णा))❀══┉┈