मंगलवार, 30 नवंबर 2021

मेरा बनारस



 मेरा बनारस 


गंगा के घाटों की रौनक ,

जैसे एक सपना सा लगता है ।

अनजान कोई भी हो ,

बनारस सब को अपना सा ही लगता है ।।  ......... 

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शनिवार, 27 नवंबर 2021

तिलक

       तिलक


मस्तक पर तिलक क्यों लगाना चाहिए -?

मस्तक पर तिलक जहा लगाया जाता है। वहा आत्मा अर्थात हम स्वयं स्थित होते है। 

तिलक मस्तक पैर दोनों भौहो के बीच नासिका के ऊपर प्रारम्भिक स्थल पर लगाए जाते है। 

जो हमारे चिंतन मनन का भी स्थान है। सौभाग्यसूचक द्रव्य जैसे चन्दन , केशर , कुमकुम 

आदि का तिलक लगाने से सात्विक एवं तेजपूर्ण होकर आत्मविश्वास में अभूतपूर्ण बृद्धि होती है। 

मन में निर्मलता , शांति एवं सयम में बृद्धि होती है। 

    

वैज्ञानिक महत्त्व 

ललाट पर तिलक धारण करने से मस्तिक को शांति मिलती है तथा बीटाएंडोरफीन और सेरेटोनिन

 नामक रसायनो का स्त्राव संतुलित मात्रा में होने लगता है इन रसायनो की कमी से उदासीनता और

 निराशा के भाव पनपने लगते है। अतः तिलक उदासीनता और निराशा से मुक्ति प्रदान करने में

 सहायक है। विभिन्न द्रव्यों से बने तिलक की उपयोगिता और महत्ता अलग अलग है। 


सामाजिक महत्त्व 

समाज में तिलक आप की शोभा बढ़ता है।  आपके मुख को लोगो के बिच अलग पहचान दिलाता है।  लोगो के आकर्षण का केन्द्र बना रहता है।   

घर में  किसी शुभ काम के दौरान तिलक लगाने का बहुत महत्त्व है।  हम पूजा के दौरान या समारोह में मुख्य अतिथि की भूमिका के रूप में तिलक जरूर लगते है। उस समय हमें तिलक लगवाने में अपने आप में बहुत शोभा महसूस होती है।   

तिलक समाज में शौर्य का प्रतिक है।  पुराने ज़माने में जब कोई राजा किसी युद्ध के लिए जाता था, तो उसकी रानी उसके विजय कामना के लिए उसे विजय का तिलक लगा कर आरती कर के युद्ध के लिए रवाना करती थी। और विजय हो कर लौटने पर भी विजय तिलक लगाती थी। 

अगर किसी को राज्य का उत्तराधिकारी बनाया जाता था तो भी राज तिलक की प्रथा भी, जो आज कल रस्म पगड़ी के नाम से जनि जाती है। 

 आज भी भारत के बहुत बड़े वर्ग में तिलक लगाने का प्रचलन है।  कोई किसी को जबरन लगाने को नहीं कहता, सबकी अपनी खुद की इच्छा और अपने मन का आनंद होता है।  जो वो खुद अपने आप लगते है। 


शुक्रवार, 12 नवंबर 2021

भारतीय व्रत और पर्व

 भारतीय पर्व 


🙏गोपाष्टमी पर्व 🙏

गोपाष्टमी, ब्रज में भारतीय संस्कृति का एक प्रमुख पर्व है। गायों की रक्षा करने के कारण भगवान श्री कृष्ण जी का अतिप्रिय नाम 'गोविन्द' पड़ा। कार्तिक शुक्ल पक्ष, प्रतिपदा से सप्तमी तक गो-गोप-गोपियों की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को धारण किया था। इसी समय से अष्टमी को गोपाष्टमी का पर्व मनाया जाने लगा, जो कि अब तक चला आ रहा है।

 हिन्दू संस्कृति में गाय का विशेष स्थान हैं। माँ का दर्जा दिया जाता हैं क्योंकि जैसे एक माँ का ह्रदय कोमल होता हैं, वैसा ही गाय माता का होता हैं। जैसे एक माँ अपने बच्चो को हर स्थिति में सुख देती हैं, वैसे ही गाय भी मनुष्य जाति को लाभ प्रदान करती हैं।

 गोपाष्टमी के शुभ अवसर पर गौशाला में गो-संवर्धन हेतु गौ पूजन का आयोजन किया जाता है। गौमाता पूजन कार्यक्रम में सभी लोग परिवार सहित उपस्थित होकर पूजा अर्चना करते हैं। गोपाष्टमी की पूजा विधि पूर्वक विद्वान पंडितो द्वारा संपन्न की जाती है। बाद में सभी प्रसाद वितरण किया जाता है। सभी लोग गौ माता का पूजन कर उसके वैज्ञानिक तथा आध्यात्मिक महत्व को समझ गौ-रक्षा व गौ-संवर्धन का संकल्प करते हैं।

शास्त्रों में गोपाष्टमी पर्व पर गायों की विशेष पूजा करने का विधान निर्मित किया गया है। इसलिए कार्तिक माह की शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि को प्रात:काल गौओं को स्नान कराकर, उन्हें सुसज्जित करके गन्ध पुष्पादि से उनका पूजन करना चाहिए। इसके पश्चात यदि संभव हो तो गायों के साथ कुछ दूर तक चलना चाहिए कहते हैं ऐसा करने से प्रगति के मार्ग प्रशस्त होते हैं। गायों को भोजन कराना चाहिए तथा उनकी चरण को मस्तक पर लगाना चाहिए। ऐसा करने से सौभाग्य की वृद्धि होती है।

         


एक पौराणिक कथा अनुसार बालक कृष्ण ने माँ यशोदा से गायों की सेवा करनी की इच्छा व्यक्त की कृष्ण कहते हैं कि माँ मुझे गाय चराने की अनुमति मिलनी चाहिए। उनके कहने पर शांडिल्य ऋषि द्वारा अच्छा समय देखकर उन्हें भी गाय चराने ले जाने दिया जो समय निकाला गया, वह गोपाष्टमी का शुभ दिन था। बालक कृष्ण ने गायों की पूजा करते हैं, प्रदक्षिणा करते हुए साष्टांग प्रणाम करते हैं।

  इस दिन गाय की पूजा की जाती हैं। सुबह जल्दी उठकर स्नान करके गाय के चरण-स्पर्श किये जाते हैं। सुबह  गाय और उसके बछड़े को नहलाकर तैयार किया जाता है। उसका श्रृंगार किया जाता हैं, पैरों में घुंघरू बांधे जाते हैं, अन्य आभूषण पहनायें जाते हैं। गो-माता की परिक्रमा भी की जाती हैं। सुबह गायों की परिक्रमा कर उन्हें चराने बाहर ले जाते हैं। गौ माता के अंगो में मेहँदी, रोली, हल्दी आदि के थापे लगाये जाते हैं। गायों को सजाया जाता है, प्रातःकाल ही धूप, दीप, पुष्प, अक्षत, रोली, गुड, जलेबी, वस्त्र और जल से गौ-माता की पूजा की जाती है, और आरती उतारी जाती है। पूजन के बाद गौ ग्रास निकाला जाता है, गौ-माता की परिक्रमा की जाती है, परिक्रमा के बाद गौओं के साथ कुछ दूर तक चला जाता है। कहते हैं ऎसा करने से प्रगति के मार्ग प्रशस्त होते हैं। इस दिन ग्वालों को भी दान दिया जाता है। कई लोग इन्हें नये कपड़े दे कर तिलक लगाते हैं। शाम को जब गाय घर लौटती है, तब फिर उनकी पूजा की जाती है, उन्हें अच्छा भोजन दिया जाता है।

  विशेष

1. इस दिन गाय को हरा चारा खिलाएँ।

2. जिनके घरों में गाय नहीं है वे लोग गौशाला जाकर गाय की पूजा करें।

3. गंगा जल, फूल चढाये, दिया जलाकर गुड़ खिलाये।

4. गाय को तिलक लगायें, भजन करें, गोपाल (कृष्ण) की पूजा भी करें, सामान्यतः लोग अपनी सामर्थ्यानुसार गौशाला में खाना और अन्य समान का दान भी करते हैं।

                       "जय जय श्री राधे"

बुधवार, 10 नवंबर 2021

जीवन की शिख


  जो बातें विद्यार्थियों को नहीं सिखाई जाती ...!


✅ - जीवन उतर चढ़ाव से भरा है इसकी आदत बना लो ।  

✅ - लोग तुम्हारे स्वाभिमान की परवाह नहीं करते , इस लिए पहले खुद को साबित करके दिखाओ । 

✅ - कालेज की पढाई पूरी करने के बाद 5 आकड़े वाली पगार की मत सोचो , एक रात में कोई वाइस प्रेसिडेंट नहीं बनता , इसके लिए अपर मेहनत करनी पड़ती है । 

✅ - अभी आपको अपने शिक्षक सख्त व् डरावने लगते होंगे क्योकि अभी तक आपके जीवन में वॉस नामक  प्राणी से पाला नहीं पड़ा ।

 - तुम्हारी गलती सिर्फ तुम्हारी है , तुम्हारी पराजय सिर्फ तुम्हारी है , किसी को दोष मत दो , गलती से सीखो और आगे बढ़ो ।

 - तुम्हारे माता पिता तुम्हारे जन्म से पहले इतने नीरस और उबाऊ नहीं थे , जितना तुम्हे अभी लग रहा है, तुम्हारे पालन पोषण करने में उन्होंने इतना कष्ट उठाया कि उनका स्वभाव बदल गया ।  

✅ - सांत्वना पुरस्कार सिर्फ स्कूल में देखने को मिलता है , कुछ स्कूलों में तो पास होने तक परीक्षा दी जा सकती है , लेकिन बाहर की दुनिया के नियम अलग है , वहा हारने वाले को मौका नहीं मिलता । 

✅ - जीवन के स्कूल में कक्षाए और वर्ग नहीं होते और वहा महीने भर की छुट्टी नहीं मिलती आपको सीखने के लिए कोई समय नहीं देता , यह सब आपको खुद करना होता है ।

 - टीवी का जीवन सही नहीं होता और जीवन टीवी के सीरियल नहीं होते , सही जीवन में आराम नहीं होता , सिर्फ काम और काम होता हैं , क्या आपने कभी विचार किया कि लग्जरी क्लास कार ( जगुआर , हम्मर बीएमडब्लू , ऑडी , फेरारी ) का किसी टीवी चैनल पर कभी कोई विज्ञापन क्यों नहीं दिखाया जाता ? कारण  यह कि उन कार कम्पनी वालो को यह पता है कि ऐसी कार लेने वाले व्यक्ति के पास टीवी के सामने बैठने का फालतू समय नहीं होता ।

 - लगातार पढाई करने वाले और कड़ी मेहनत करने वाले अपने मित्रो को कभी मत चिढ़ाओ , एक सयम ऐसा आएगा कि तुम्हे उनके निचे काम करना पड़ेगा ।     

 - लाटरी सिर्फ पैसो  होती , जिंदगी में सही इंसान का मिलना भी किसी लाटरी से काम नहीं होता ।

 - कर्म बढ़िया होने चाहिए ... क्योकि वक्त किसी का नहीं होता, जरा सी बात से मतलब बदल जाते है । ऊगली उठे तो बेइज्जती, और अंगूठा उठे तो तारीफ, और अगुठे और ऊगली मिले तो लाजवाब, यही तो है जिंगदी का हिसाब।    

 - तकलीफ किसे कहते है ! जब दिल में कहने को बहुत कुछ हो और जुबान खामोश और समझने वाला कोई ना हो..... 

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मंगलवार, 2 नवंबर 2021

खेल

खेल

खले हमारे जीवन का बहुत अहम् हिस्सा है।  खेल, खेलने से हमारा शरीर और मस्तिष्क चुस्त - दुरुस्त रहता है।  हम जीवन के किसी पड़ाव पर हो, अगर खेल का नाम दिमाग में आता है, तो एक बार शरीर में ताजगी आ जाती है, ऐसा लगता है कि हम अभी बच्चे ही है या हम अभी भी खेल सकते है।  उम्र कोई भी हो खेल तो मनोरंजन का रूप होता है।  जिसे हम जब तक जीते है अनुभव कर सकते है। 

खेल का उम्र से कोई लेना देना नहीं होता । आप किसी भी उम्र में खेल सकते है। लेकिन कुछ खेल उम्र के साथ ही ख़त्म हो जाते है।  लेकिन आज मै आप को यहाँ उन खेलो के बारे में बताउगा जो, कि हमारे बचपन में हमारे गाँवो में खेले जाते है, कौन से महीने में  हम कौन सा खेल, खेलते है। आज मै आपको महीने के हिसाब से खेलो से रूबरू कराऊंगा।    


जनवरी महीना 

पिट्टू   ( SEVEN  STONE )

इस महीने में ज्यादातर गांव में बच्चे पिट्टू पिट्टू सात पत्थरो का टुकड़ा जो एक टुकड़ा -दूसरे टुकड़े के ऊपर बारी-बारी से ईमारत केआकार में रक्खा होता है ) का खेल खेलते है । यह एक बहुत ही मनोरंजक खेल है। 

इस खेल में बच्चो की दो टोली होती है।  एक तरफ बच्चो की एक टोली जो एक गेंद लेकर पिट्टू पर  फेकने को तैयार रहते है।  

तो दूसरी तरफ दूसरी टोली के बच्चे गेंद पकड़ने को तैयार रहते है। 

जैसे ही पहली टोली गेंद मार कर पिट्टू को गिराते है और गेंद दूर लुढ़क कर जाती है।  तो दूसरी टोली गेंद पकड़ कर पहली टोली को गेंद से मार कर छूने का काम करती है।  

उसी दौरान पहली टोली गिरे हुए पिट्टू को फिर से क्रमवार इमार की तरह एक के ऊपर एक कर के लगा देती है। 

अगर पहली टोली को पिट्टू तैयार करने से पहले दूसरी टोली ने, गेंद से उनको मार दिया यानि छू लिया तो, खेल में गेंद से पिट्टू को मरने की बारी दूसरी टोली की हो जाती है। 

यह खेल बड़ा ही मजेदार होता है।  

जनवरी माह में सर्दी होने के कारण बच्चे कपडे ज्यादा पहनते है।  जिससे गेंद अगर कोई फेक कर मरता भी है, तो ज्यादा चोट नहीं लगता। 

इसे खेलने से एक तो शारीरिक व्यायाम होता है और साथ के साथ मनोरंजन भी होता है । 


भारत के प्रसिद्ध ग्यारह संत और उनके चमत्कार

 भारत के प्रसिद्ध ग्यारह संत और उनके चमत्कार 〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️ बचपन  से आप सुनते आये होंगे कि जब-जब धरती पर अत्याचार बढ़ा, तब-तब भ...