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शुक्रवार, 29 अक्तूबर 2021

भारतीय ऋषि मुनियो की खोज और उनका महत्व् 🙏🙏

          भारतीय ऋषि मुनियो की खोज और उनका महत्व् 

 


प्राचीन भारतीय इतिहास में ऐसे कई उदाहरण है जिस पर हम गर्व महसूस करते हैं । भारत की धरती को ऋषि, मुनि, सिद्ध और देवताओं की भूमि के नाम से पुकारा जाता है। यह कई तरह के विलक्षण ज्ञान व चमत्कारों से अटी पड़ी है। सनातन धर्म वेदों को मानता है। प्राचीन ऋषि-मुनियों ने घोर तप, कर्म, उपासना, संयम के जरिए वेदों में छिपे इस गूढ़ ज्ञान व विज्ञान को ही जानकर हजारों साल पहले कुदरत से जुड़े कई रहस्य उजागर करने के साथ कई आविष्कार किये व युक्तियां बताई। ऐसे विलक्षण ज्ञान के आगे आधुनिक विज्ञान भी नतमस्तक होता है।कई ऋषि-मुनियों ने तो वेदों की मंत्र-शक्ति को कठोर योग व तपोबल से साधकर ऐसे अद्भुत कारनामों को अंजाम दिया कि बड़े-बड़े राजवंश व महाबली राजाओं को भी झुकना पड़ा। 


 आर्यभट्ट

आर्यभट्ट की गिनती भारत के महानतम खगोल वैज्ञानिकों के रूप में की जाती है उन्होंने उस समय ब्रह्मांड की जानकारी दुनिया के सामने रखी जिस समय दुनिया के लोग ठीक से गिनती गिनना भी नहीं जानते थे आर्यभट्ट उस समय खगोल विज्ञान के प्रकांड पंडित थे हालांकि दुनिया मानती है कि पृथ्वी और सूर्य के सही संबंध के बारे में सबसे पहले बताने वाला इंसान 'निकोलस कॉपरनिकस' था लेकिन आर्यभट्ट ने यह बात कॉपरनिकस से हजारों साल पहले बता दी थी।

महान भारतीय गणितज्ञ आर्यभट्ट जी ने शून्य (0) और दशमलव (.) की खोज की थी। यूरोपीय देशों को अंक प्रणाली का ज्ञान अरब देश से प्राप्त हुआ था जबकि अरब देश को यह ज्ञान भारत देश से मिला था।

जरा सोचिए शून्य (0) नहीं होता तो क्या आज हम गणित की कल्पना भी कर सकते थे? डेसिमल या दशमलव नहीं होता तो क्या होता? भारत का 0 अरब में सिफ़र यानी खाली नाम से जाना गया। लैटिन, इटालियन, फ्रेंच से होते हुए अंग्रेजी में यह ज़ीरो (zero) कहलाया।


भास्कराचार्य

दुनिया को  गुरुत्वाकर्षण के बारे में सर्व प्रथम भाष्कराचार्य जी ने अवगत कराया था ।

आधुनिक युग में धरती की गुरुत्वाकर्षण शक्ति (पदार्थों को अपनी ओर खींचने की शक्ति) की खोज का श्रेय न्यूटन को दिया जाता है। किंतु बहुत कम लोग जानते हैं कि गुरुत्वाकर्षण का रहस्य न्यूटन से भी कई सदियों पहले भास्कराचार्यजी ने उजागर किया। भास्कराचार्यजी ने अपने ‘सिद्धांतशिरोमणि’ ग्रंथ में पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के बारे में लिखा है कि ‘पृथ्वी आकाशीय पदार्थों को विशिष्ट शक्ति से अपनी ओर खींचती है। इस वजह से आसमानी पदार्थ पृथ्वी पर गिरता है’।


आचार्य कणाद

आचार्य कणाद परमाणु की अवधारणा के जनक माने जाते हैं। आधुनिक दौर में अणु विज्ञानी जॉन डाल्टन के भी हजारों साल पहले महर्षि कणाद ने यह रहस्य उजागर किया कि द्रव्य के परमाणु होते हैं।उनके अनासक्त जीवन के बारे में यह रोचक मान्यता भी है कि किसी काम से बाहर जाते तो घर लौटते वक्त रास्तों में पड़ी चीजों या अन्न के कणों को बटोरकर अपना जीवनयापन करते थे। इसीलिए उनका नाम कणाद भी प्रसिद्ध हुआ। 



ऋषि विश्वामित्र 

ऋषि बनने से पहले विश्वामित्र क्षत्रिय थे। ऋषि वशिष्ठ से कामधेनु गाय को पाने के लिए हुए युद्ध में मिली हार के बाद तपस्वी हो गए। विश्वामित्र ने भगवान शिव से अस्त्र विद्या पाई। इसी कड़ी में माना जाता है कि आज के युग में प्रचलित प्रक्षेपास्त्र या मिसाइल प्रणाली हजारों साल पहले विश्वामित्र ने ही खोजी थी।ऋषि विश्वामित्र ही ब्रह्म गायत्री मंत्र के दृष्टा माने जाते हैं। विश्वामित्र का अप्सरा मेनका पर मोहित होकर तपस्या भंग होना भी प्रसिद्ध है। शरीर सहित त्रिशंकु को स्वर्ग भेजने का चमत्कार भी विश्वामित्र ने तपोबल से कर दिखाया।


ऋषि भारद्वाज 


आधुनिक विज्ञान के मुताबिक राइट बंधुओं ने वायुयान का आविष्कार किया। वहीं हिंदू धर्म की मान्यताओं के मुताबिक कई सदियों पहले ही ऋषि भारद्वाज ने विमानशास्त्र के जरिए वायुयान को गायब करने के असाधारण विचार से लेकर, एक ग्रह से दूसरे ग्रह व एक दुनिया से दूसरी दुनिया में ले जाने के रहस्य उजागर किए। इस तरह ऋषि भारद्वाज को वायुयान का आविष्कारक भी माना जाता है। 


गर्गमुनि 


गर्ग मुनि नक्षत्रों के खोजकर्ता माने जाते हैं। यानी सितारों की दुनिया के जानकार।

ये गर्गमुनि ही थे, जिन्होंने श्रीकृष्ण एवं अर्जुन के बारे में नक्षत्र विज्ञान के आधार पर जो कुछ भी बताया, वह पूरी तरह सही साबित हुआ।  कौरव-पांडवों के बीच महाभारत युद्ध विनाशक रहा। इसके पीछे वजह यह थी कि युद्ध के पहले पक्ष में तिथि क्षय होने के तेरहवें दिन अमावस थी। इसके दूसरे पक्ष में भी तिथि क्षय थी। पूर्णिमा चौदहवें दिन आ गई और उसी दिन चंद्रग्रहण था। तिथि-नक्षत्रों की यही स्थिति व नतीजे गर्ग मुनिजी ने पहले बता दिए थे।


 महर्षि सुश्रुत



महर्षि सुश्रुतय शल्यचिकित्सा विज्ञान यानी सर्जरी के जनक व दुनिया के पहले शल्यचिकित्सक (सर्जन) माने जाते हैं। वे# शल्यकर्म या आपरेशन में दक्ष थे। महर्षि सुश्रुत द्वारा लिखी गई ‘सुश्रुतसंहिता’ ग्रंथ में शल्य चिकित्सा के बारे में कई अहम ज्ञान विस्तार से बताया है। इनमें सुई, चाकू व चिमटे जैसे तकरीबन 125 से भी ज्यादा शल्यचिकित्सा में जरूरी औजारों के नाम और 300 तरह की शल्यक्रियाओं व उसके पहले की जाने वाली तैयारियों, जैसे उपकरण उबालना आदि के बारे में पूरी जानकारी बताई गई है। जबकि आधुनिक विज्ञान ने शल्य क्रिया की खोज तकरीबन चार सदी पहले ही की है। माना जाता है कि महर्षि सुश्रुत मोतियाबिंद, पथरी, हड्डी टूटना जैसे पीड़ाओं के उपचार के लिए शल्यकर्म यानी आपरेशन करने में माहिर थे। यही नहीं वे त्वचा बदलने की शल्यचिकित्सा भी करते थे।


आचार्य चरक


 



चरकसंहिता’ जैसा महत्वपूर्ण आयुर्वेद ग्रंथ रचने वाले आचार्य चरक आयुर्वेद विशेषज्ञ व ‘त्वचा चिकित्सक’ भी बताए गए हैं। आचार्य चरक ने शरीरविज्ञान, गर्भविज्ञान, औषधि विज्ञान के बारे में गहन खोज की। आज के दौर में सबसे ज्यादा होने वाली बीमारियों जैसे डायबिटीज, हृदय रोग व क्षय रोग के निदान व उपचार की जानकारी बरसों पहले ही उजागर कर दी। 

इनके द्वारा दी गई जानकारी आज भी कारगर है। गांव में लोग आज भी इनके द्वारा बताए गए उपायों के माध्यम से आपने रोगो का इलाज करते है। 

जहा आज भी विज्ञानं की चिकित्सा नहीं है।  वहा आज भी लोग इनके द्वारा बताए उपायों का अनुसरण करते है।  


पतंजलि 




आधुनिक दौर में जानलेवा बीमारियों में एक कैंसर या कर्करोग का आज उपचार संभव है। किंतु कई सदियों पहले ही ऋषि पतंजलि ने कैंसर को भी रोकने वाला योगशास्त्र रचकर बताया कि योग से कैंसर का भी उपचार संभव है। 


बौद्धयन  

भारतीय त्रिकोणमितिज्ञ के रूप में जाने जाते हैं। कई सदियों पहले ही तरह-तरह के आकार-प्रकार की यज्ञवेदियां बनाने की त्रिकोणमितिय रचना-पद्धति बौद्धयन ने खोजी। दो समकोण समभुज चौकोन के क्षेत्रफलों का योग करने पर जो संख्या आएगी, उतने क्षेत्रफल का ‘समकोण’ समभुज चौकोन बनाना और उस आकृति का उसके क्षेत्रफल के समान के वृत्त में बदलना, इस तरह के कई मुश्किल सवालों का जवाब बौद्धयन ने आसान बनाया।


महर्षि दधीचि  



महर्षि दधीचि महातपोबलि और शिव भक्त ऋषि थे। संसार के लिए कल्याण व त्याग की भावना रख वृत्तासुर का नाश करने के लिए अपनी अस्थियों का दान कर महर्षि दधीचि पूजनीय व स्मरणीय हैं। इस संबंध में पौराणिक कथा है कि

एक बार देवराज इंद्र की सभा में देवगुरु बृहस्पति आए। अहंकार से चूर इंद्र गुरु बृहस्पति के सम्मान में उठकर खड़े नहीं हुए। बृहस्पति ने इसे अपना अपमान समझा और देवताओं को छोड़कर चले गए। देवताओं को विश्वरूप को अपना गुरु बनाकर काम चलाना पड़ा, किंतु विश्वरूप देवताओं से छिपाकर असुरों को भी यज्ञ-भाग दे देता था। इंद्र ने उस पर आवेशित होकर उसका सिर काट दिया। विश्वरूप, त्वष्टा ऋषि का पुत्र था। उन्होंने क्रोधित होकर इंद्र को मारने के लिए महाबली वृत्रासुर पैदा किया। वृत्रासुर के भय से इंद्र अपना सिंहासन छोड़कर देवताओं के साथ इधर-उधर भटकने लगे।

ब्रह्मादेव ने वृत्तासुर को मारने के लिए अस्थियों का वज्र बनाने का उपाय बताकर देवराज इंद्र को तपोबली महर्षि दधीचि के पास उनकी हड्डियां मांगने के लिये भेजा। उन्होंने महर्षि से प्रार्थना करते हुए तीनों लोकों की भलाई के लिए उनकी अस्थियां दान में मांगी। महर्षि दधीचि ने संसार के कल्याण के लिए अपना शरीर दान कर दिया। महर्षि दधीचि की हड्डियों से वज्र बना और वृत्रासुर मारा गया। इस तरह एक महान ऋषि के अतुलनीय त्याग से देवराज इंद्र बचे और तीनों लोक सुखी हो गए। 


महर्षि अगस्त्य 



 वैदिक मान्यता के मुताबिक मित्र और वरुण देवताओं का दिव्य तेज यज्ञ कलश में मिलने से उसी कलश के बीच से तेजस्वी महर्षि अगस्त्य प्रकट हुए। महर्षि अगस्त्य घोर तपस्वी ऋषि थे। उनके तपोबल से जुड़ी पौराणिक कथा है कि एक बार जब समुद्री राक्षसों से प्रताड़ित होकर देवता महर्षि अगस्त्य के पास सहायता के लिए पहुंचे तो महर्षि ने देवताओं के दुःख को दूर करने के लिए समुद्र का सारा जल पी लिया। इससे सारे राक्षसों का अंत हुआ। महर्षि अगस्त एक वैदिक ऋषि थे। ये राजा दशरथ के राजगुरु थे। महर्षि अगस्त्य की गणना सप्त ऋर्षियों में की जाती है। इन्होने अगस्त्यसंहिता नामक ग्रंथ की रचना की। हैरानी की बात है कि इस ग्रंथ में बिजली बनाने की विधि बताई गई है, जो उस समय में किसी अजूबे से कम नहीं थी।


कपिल मुनि



भगवान विष्णु के 24 अवतारों में से एक अवतार माने जाते हैं। इनके पिता कर्दम ऋषि थे। इनकी माता देवहूती ने विष्णु के समान पुत्र की चाहत की। इसलिए भगवान विष्णु खुद उनके गर्भ से पैदा हुए। कपिल मुनि 'सांख्य दर्शन' के प्रवर्तक माने जाते हैं। इससे जुड़ा प्रसंग है कि जब उनके पिता कर्दम संन्यासी बन जंगल में जाने लगे तो देवहूती ने खुद अकेले रह जाने की स्थिति पर दुःख जताया। इस पर ऋषि कर्दम देवहूती को इस बारे में पुत्र से ज्ञान मिलने की बात कही। वक्त आने पर कपिल मुनि ने जो ज्ञान माता को दिया, वही 'सांख्य दर्शन' कहलाता है।

इसी तरह पावन गंगा के स्वर्ग से धरती पर उतरने के पीछे भी कपिल मुनि का शाप भी संसार के लिए कल्याणकारी बना। इससे जुड़ा प्रसंग है कि भगवान राम के पूर्वज राजा सगर के द्वारा किए गए यज्ञ का घोड़ा इंद्र ने चुराकर कपिल मुनि के आश्रम के करीब छोड़ दिया। तब घोड़े को खोजते हुआ वहां पहुंचे राजा सगर के साठ हजार पुत्रों ने कपिल मुनि पर चोरी का आरोप लगाया। इससे कुपित होकर मुनि ने राजा सगर के सभी पुत्रों को शाप देकर भस्म कर दिया। बाद के कालों में राजा सगर के वंशज भगीरथ ने घोर तपस्या कर स्वर्ग से गंगा को जमीन पर उतारा और पूर्वजों को शापमुक्त किया। 


शौनक ऋषि  


वैदिक आचार्य और ऋषि शौनक ने गुरु-शिष्य परंपरा व संस्कारों को इतना फैलाया कि उन्हें दस हजार शिष्यों वाले गुरुकुल का कुलपति होने का गौरव मिला। शिष्यों की यह तादाद कई आधुनिक विश्वविद्यालयों की तुलना में भी कहीं ज्यादा थी। 




ऋषि वशिष्ठ 


वशिष्ठ ऋषि राजा दशरथ के कुलगुरु थे। दशरथ के चारों पुत्रों राम, लक्ष्मण, भरत व शत्रुघ्न ने इनसे ही शिक्षा पाई। देवप्राणी व मनचाहा वर देने वाली कामधेनु गाय वशिष्ठ ऋषि के पास ही थी।



कण्व ऋषि 




   प्राचीन ऋषियों-मुनियों में कण्व का नाम प्रमुख है। इनके आश्रम में    ही राजा दुष्यंत की पत्नी शकुंतला और उनके पुत्र भरत का पालन-     पोषण हुआ था। माना जाता है कि उसके नाम पर देश का नाम        भारत हुआ। सोमयज्ञ परंपरा भी कण्व की देन मानी जाती है।








 

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